बुधवार, 10 दिसंबर 2008

"इक याद का तोहफा"

  • आज इक याद ने तोहफा दिया मुझको
  • फिर उसकी दोस्ती का भरम दिया मुझको,
  • कभी जो जख्म मिलें थे उससे तमगों की तरह
  • फिर उसमे कमियों ने दर्द दिया मुझको,
  • इक अहसान इस याद का फिर भी रहा
  • पिछले दर्द की दवा मिलीं इक दर्द से मुझको,
  • छिपाकर गम हमने हंसने की कोशिश की
  • मगर झूठी हँसी ने सिर्फ़ आंसू दिया मुझको,
  • वक्त का क्या पता कब साथ मेरा छोड़ दे
  • काश इक बार वो फिर साथ मिलता मुझको,
  • तन्हाई जब भी बढ़ी यादों की खिड़की खोल दी मैंने
  • जहाँ मिल भी जाती दोस्ती की सादगी मुझको,
  • उम्र के रास्ते पर चलते गए अब हम
  • गुजरे हुए मील के पत्थर दिखते गए मुझको,
  • वक्त दबे पावों जायें और आँखे मीचें उसकी
  • शायद वो मेरे स्वर-शब्दों से पहचाने मुझको,
  • बड़ी मुश्किल है अब मेरी बागबाँ से उसकी दोस्ती चलना
  • है इबादत का सिला ये तो कबूल नही मुझको,
  • दोस्त जाकर उससे कहना कि उसे भूल गए हम भी
  • गौर से देखना आँखों से क्या कहता है वो मुझको !!

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

नेता जी कुत्ता किसे बोले..?

मुझे नही लगता की देश का वीर, शहीद होने के पूर्व अपनी शहादत के बाद लोगो की प्रतिक्रिया की आशा रखता होगा उनकी सोच को महसूस कर के देखिये तो आपको सिर्फ़ उसमे भारत दिखेगा चलिए इसको रहने दीजिये अपने देश के नेताओ को ले लीजिये जिन्हें आतंकवादी घटना होने पर सफाई देने के लिए आने वालो का हर घंटे पर बदला गया सूट नही दिखा और इन बातों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक वर्ग का सवाल नही बल्कि उनकी लिप्सटिक और पाउडर ही दिखा।
सबसे ज्यादा शर्मशार किया केरल के मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन ने किया जिन्होंने देश के एक शहीद वीर सपूत मेजर संदीप उन्नीक्रष्णन के सहादत से गर्वित परिवार के शम्बोधन में कहा की, "अगर संदीप सेना के शहीद मेजर न होते तो उनके यहाँ कोई कुत्ता भी ना जाता"।
एक तो इस वीर के पिता ने ऐसे ही नही किया वो है इनको धक्के मारकर भागने का, खैर ये हमारी संस्कृति में ही नही है तो आप कैसे कर सकते थे। अच्युतानंदन जब इस घर का संबोधन कर रहे थे, तो उन्हें ये समझ में नही आया की वो एक शेर के परिवार के बारे में बोल रहे है। जिसकी एक झलक से ही कुत्तो का क्या होता है। ये तो सब जानते है लेकिन ये संबोधन अगर इन्होने ख़ुद के जाने से किया है तो ये उपमा पाकर वो मासूम सा जानवर भी शर्म करे जो अपनी वफादारी के लिए प्रसिध्द है। उनको ये नही पता की इन शेरो ने उन जैसे कितने नेताओ को जेड और जेड श्रेणी में सुरक्षा मुहैया कराते हैं
वीरों की सहादत का मजाक उडाने वाले को अगर पद से हटाने की मांग देश की राजनीती के एक मशखरे ने की है तो ये बिल्कुल जायज है, वैसे इनके इस अपराध की सजा सिर्फ़ आलोचना ही नही है इसके लिए भारत सरकार को भी सख्त कदम उठाना चाहिए ताकि इन वीरो की शहादत के गर्व को दुबारा कोई छेड़ने की हिम्मत न कर सकें।

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

"कहाँ सो रहे हैं वो देश के तथाकथित सपूत..?"

आज जब भारत आतंकवाद के लगभग पूर्ण गिरफ्त में है तो क्या इस देश का जागरूक वर्ग इस आतंकवाद से लड़ने की एक आस उन लोगों से ना रखें जो अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए ख़ुद को देश का सपूत या प्रदेश का प्रतिनिधि या क्षेत्र विशेष का ठेकेदार समझते हैं।
क्यो ना ये ठेकेदार देश के जवानों के पूर्व ही उन आतंकवादियों के इरादों को जय श्री राम, जय बजरंगबली या फतवा जारी कर अल्लाह हो अकबर कहते हुए या अलगाववाद का चोला पहनकर देश को लाल कराने के बजाय या फिर कक्षा पहने हुए हाथ में डंडा लेकर स्वयं ही निष्फल करें जैसा कि अक्सर ये साम्प्रदायिक तथा अलगाववादी घटनाओं को अंजाम देने में करते आ रहे है।
हम देश में आंतरिक आतंकवाद से सर्वाधिक ग्रसित मुम्बई में सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाले और ख़ुद को नायक समझने वाले देश के कुपूतो से भी ये आशा रखते हैं कि वो मुम्बई में दक्षिणी भारतीय और उत्तर भारतीयों से अलगाव करने के बजाय उन आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित भीड़ को भागने का सामर्थ्य दिखाएँ, ताकि देश उनके सच्चे महाराष्ट्र प्रेम को पहचान सके और उनसे घ्रणा करने के बजाय गर्व से सलाम कर सकें।
खैर इनसे ये आशा रखना ख़ुद से एक बेईमानी होगी क्योकि उनके सामने एक आदर्श है कि इस देश में ये रीति रही है कि मूलकर्तव्यों को ताख पर रखकर देश को प्रथक करने में पूर्ण सहयोगी नेताओ को इस देश कि जनता ने ही कुछ प्रदेशो में मुख्यमंत्री तथा कुछ को उच्च पदों पर आसीन कराया है।
आख़िर हम कब तक अपने देश के कर्णधारों से देश में हुई किसी भी अराजक घटनाओं कि निंदा सुनते रहेंगें। क्या कभी हमको उनके द्वारा की गई किसी कार्यवाही से संतुष्टि प्राप्त हो सकेगी ? इसका जवाब खोजने से पूर्व हम ये जानना चाहेंगे कि मुम्बई में हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकवादी हमले को निष्क्रिय करने में ख़ुद को महाराष्ट्र का ठेकेदार कहने वालों ने क्या किया ? क्या वो सिर्फ़ दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीयों की ही पहचान कर पा रहे हैं ? या फिर वो आतंकियों के खौफ से उनकी पहचान करने में असमर्थ है, उनको ये नही दिख रहा है की भारत की मुम्बई की सुरक्षा के लिए जो शहीद हुए वो एक भारतीय थे और ये महाराष्ट्र के तथाकथित सपूत गोलियों की सनसनाहट में बिलों को तलाश कर गुम हुए जा रहे थे।
ये सवाल सिर्फ़ मुम्बई ही नही अपितु देश के समस्त तथाकथित क्षेत्रीय ठेकेदारों से उठता है कि आतंकवाद तथा अलगाववादी घटनाओं के घटित होने पर तथा अराजकता एवं अशान्ती की समस्याओं के उत्पन्न होने पर अपने कानों में तेल डालकर आख़िर "कहाँ सो रहें होते हैं वो देश के तथाकथित सपूत..?"

सोमवार, 10 नवंबर 2008

"मीत बना मै घूम रहा हूँ"

मीत बना मै घूम रहा हूँ
साथ लिए वीरानी को,
यादों का अवरोध लगाकर
बस यह आस लगता हूँ !!

काश कहीं मिल जातें अपने
मिल जाता फिर उनका साथ,
संग होते सब मित्र हमारे
साथ लिये सर्मध्दि को,

मुझे दूरी का हे मित्रों
कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिलेंगी हमकों मंजिल इकदिन
तब साथ रहेगें बन हमसाया !!

"इक और सुबह आई"

आज फिर दोस्ती के दिन की वो सुनहरी सुबह आ गई
शांत सी जिंदगी में कमी का अहसास दिला गई
हम न थे कभी तनहा फिर भी तनहाई महसूस करा गई
खुशियों में थोडी सी कमी का अहसास दिला गई
जिंदगी तो खुशनसीब है की दोस्ती साथ निभा गई
देखों आज फिर वो सुनहरी सुबह आ गई
वादा था किसी का लेकिन हमें इंतजार न था
यादें ही मुबारकबाद देकर उसका वादा निभा गई
इंतजार न था इसका लेकिन अपने आने का अहसास दिला गई
देखों दोस्तों आज फिर वो सुनहरी सुबह आ गई
इस दिन का अब नाम क्या रखूं ये सवाल उठा गई
जवाब मांगते ही बीतें दिनों की याद दिला गई
यादें भी दिल में इक कसक उठा गई
जरूरत तो नही लेकिन इक कमी का अहसास दिला गई
देखों मित्र दोस्ती के दिन की खिलखिलाती सुबह आ गई !!

शनिवार, 8 नवंबर 2008

"इक मित्र आई थी"

इक मित्र आई थी
देखों मेरे ख्यालों में
सपनों के उस दौर ले गई
मस्ती भरी बहारों में
सारी कमियों को भूल गया मै
उसकी मुस्कुराहट भरे जादू में
फिर करनी थी हमकों
दूर कहीं वीराने में
भटक रहें थे तलाश में जिसके
हम झंझट की सवारी में
फिर गुम थे हम
रहकर दुनिया की नजरों में
ले चलीं थी झंझट हमकों
यादों की फुलवारीं में
कुछ खुशियाँ खोजीं थी हमनें
यादों भरीं बहारों में
पर खुशी मिलीं न वो
जिसकी थी तलाश हमें
तलाश पूरी होती भी कैसे
ठहरें हम जो सपनों में
वो तो आई थी बस
खुशियों की अभिलाषा में
खुशी आई थी
देखो मेरे ख्यालों में
इक मित्र आई थी
देखों मेरे ख्यालों में !!

शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

"जीवन की कविता"

याद आई खुद की तो कविता लिख लीं
जिंदगी के खोये लमहों से लौटा तो कविता लिख ली
कविता ने ही खुशी का पैगाम भेजा
मेंने भी इससे मुस्कुराहट कबूल कर लीं
मुस्कुराहट में दोस्तों को खुशी का अहसास कराया
सबकी खुशी में खुद की कमी महसूस कर लीं
न है तमन्ना अब रातों में खो जाने की
बस प्यारी यादों में नींदे तबाह कर लीं
जिंदगी के रिश्तों से कोई शिकवा ही नही
देखो मेने एक रिश्ते की निबाह कर लीं !!

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

"लौट आयीं हैं फिर यादें"

लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी,
उन्मुक्त सी
बीतें हुए ख्यालों सी
अन्जानी सी, मतवाली सी
सुखद भरी अहसासों सी,
लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी,

बचपन की हैं कुछ मीठीं यादें
भोली सी हैं नटखट यादें
बच्चे थें हम
अब ये यादें हैं
लड़तें थे हम
ये यादें हैं
गिरते थें हम
ये यादें हैं
रोतें थे हम
अब ये बस यादें हैं
लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी,

जब हम किशोर हुये
तब की कुछ शरारती यादें,
क्रिकेट हैं यादें
पतंग हैं यादें
घूमने से लेकर
कॉलेज हैं यादें
लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी,

युवा दौर में जब हम थे
तब हैं अपनी मस्ती की यादें
मित्र हैं यादें
क्लास हैं यादें
कैंटीन हैं यादें
पार्क हैं यादें
कुछ तो हैं अब भी ऐसा
की अब तक ये हसीं है यादें
लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी,

अब हम जीवन पथ पर हैं
मंजिल तय करने को हैं,
न हैं अब वो पल हमारें
पर यादें अब भी हैं साथ हमारें !!
लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी,
लौट आई हैं फिर यादें
सुबह की उजालों सी !!

"संकल्प"

हम तो हैं राही
जिंदगी के सफर के,
साथ बढ़ रहा जो
कदम दर कदम हमारें
वो है हमसफ़र हमारा
हम हैं हमराहीं उसके,
Align Center
सपनों के पथ पर
बढ़ चलें इक साथ हम अब,
हैं दुनिया फतेह करने का इरादा
जिंदगी के सफर में,

बन पथिक हम
राह पर निकलें अब हैं,
मंजिल पाने की चाह
दौडें अब हैं,

न रुकेंगी अब
ये जीत का सिलसिला,
अब तो करना हैं बस
हमें ही फैसला,
पाकें मंजिल भी
हमें हैं नहीं रुकना,
हैं आगे और भी मंजिल
हैं आगे और भी बढ़ना!!

"मिट्टी का घरौंदा"

वर्षा के मौषम में हम
मिट्टी का घरौंदा बनायेंगें,
न बह जायें कहीं वो
ऐसी छांव को पायेंगें,
ज्ञान की फुलवारी से
उस घर को सजायेंगे,
मानवता के फूल से
उसकी शोभा बढायेंगे,
सूर्य किरणों को
उसकी आँगन -धूल बनायेंगे,
घर की महक होगी
खुशियों को बसाने से,
घरौंदा होगा अडिग हरदम
भले ही लाख तुंफा आयें,
है मिट्टी में भी इतना दम
ये सब को कर दिखायेंगे.!!

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

"इक गुडियाँ"

इक नन्ही सी गुडियाँ, प्यारी सी गुडियाँ,
सिल्की सी गुडियाँ, माँ की दुलारी है गुडियाँ,
थोड़ी सी सख्त पर दयालु है गुडियाँ,
परियों के दिल से भी खुबसूरत है गुडियाँ,
रोती है पल भर में, हँस देती है गुडियाँ,
कहतें हैं सारे दोस्त, दोस्त के रूप तोहफा है गुडियाँ,
कईयों के गम छुपा कर हमेशा हँसती रहती गुडियाँ,
अनेकों सपने लेकर दुनिया में आई है गुडियाँ,
गलती होती है किसी से माफ कर देती है गुडियाँ,
डर लगता है हमको इससे, क्योंकि हम सब की जरुरत है ये गुडियाँ !!