सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

"किसी के आने की भनक आज है"

किसी के आने की भनक आज है
अकेले में मुस्कुराने की सनक आज है
कहाँ खो चलें थे हम ख़ुद को
फिर उसे पाने की तलब आज है,
एक दोस्त हमारा आता होगा
महफ़िल तो नही पर
खुशबू जरूर लाता होगा
होने को तो बस हम ही होंगे
जो साथ खिलखिलाने की ललक आज है,
फिर झगडेगें हम बारी-बारी
सबक देंगे सब दुनिया से न्यारी
होगें हम अब तनहाई से दूर
क्योंकि फिर साथ बैठने का समय आज है !!

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

"फिर कैसे वो खुशी दे गई..."

रात है सुहानी सी
दिन भी तो था हसीन
फिर क्यों लगता है
ये मौसम अन्जाना सा,

रास्ते पर है वीरानीं
महफ़िल भी तो है सूनी सी
फिर क्यों छाई है
हम पर मदहोशी सी,

गुम न है कोई
बस है इक पुकार की दूरी पर
फिर क्यों न निकलतीं है
हमसे इक आवाज कोई,

कुछ न चाहा था हमने
न कुछ भी महसूस किया
फिर कैसे वो खुशी दे गई
जैसे थी पहचान कोई !!