मंगलवार, 31 मार्च 2009

"शाश्वत प्यार या फटाफट मोहब्बत..."

प्यार क्या होता, कब होता है, कैसे होता है और क्यो होता है? इस बात का अभी तक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल सका है। किंतु दो पक्ष जरूर उभर कर आतें हैं, एक जो प्राचीन काल से चला आ रहा है शाश्वत प्यार तथा दूसरा है आधुनिक युग का फटाफट मोहब्बत जो दो-तीन मुलाकात, गिफ्ट के आदान-प्रदान, बस कुछ फिल्मी आदाएं और एस.एम्.एस. के साथ ही मोबाईल कॉल से हो जाता है।
एक विद्वान के द्वारा प्रकाशित लेख से हमें ज्ञात हुआ की प्यार निहायत क्षणभंगुर होता है, जो की 'डोपामाइन' नामक रसायन से उत्पन्न होता है और उसी लेख में उन्होंने इसके विरोध में देवदास युगीन प्रेमियों की प्रतिक्रियाओं का जिक्र करतें हुए लिखा है की प्रेम शाश्वत होता है तथा कई जन्मो तक चलता रहता है।
इस मुद्दे का जिक्र जब मैंने अपने मित्रो के समकक्ष किया तो उधर से कई मत मिलें की, ऐसे ही थोड़े पूरे विश्व के साहित्य में प्रेम कथायें भरी पड़ी है। यदि प्रेम न होता तो कोई कविता ही न लिख पाता। इस प्रेम के विरह में आँसू बहा-बहा कर कई महाकवि बन गए है। एक मेरी बात का भी समर्थन मुझे उन लोगों से मिला की साहित्य लिखने के लिए एक प्रेयसी की अति आवश्यकता होती है अन्यथा आप अच्छा साहित्य रच ही नही सकतें हैं। इसके बारे में उन लोगों ने उदहारण भी दे डाला जिसमे एक तो थी 'गुनाहों का देवता' तथा दूसरे उदहारण को सबने एक स्वर में ठहाके के साथ प्रस्तुत किया जो था मेरे द्वारा लिखा जा रहा मेरा उपन्यास "दोस्ती का सफर"
इस ठहाकों के बीच में मैंने उनसे पूछा की क्या मुझे भी प्यार हो सकता है? तो हमारे एक चहेतें मित्र ने फट से जवाब दिया की अब तो नही होना चहिये।
.पिछले मुद्दे का स्पष्ट उत्तर न मिलने पर मैंने मुद्दे को थोड़ा सा परिवर्तित किया की किस तरह का प्यार आज सफल है? प्राचीन साहित्यों में दर्ज शाश्वत प्यार या आधुनिक काल का फटाफट मोहब्बत जो मोबाईल कॉल पर गुजरी रातों, कॉफी हाउस से कुछ और एकांत स्थानों तक सीमित रहकर ख़त्म हो जाती है। साथ ही जो नए प्रेमी और प्रेयसी की तलाश में अग्रसर होता है। इसमे उन्हें टेलीकॉम कम्पनियों के द्वारा काफी सहायता मिलती है। लोग मोबाईल की सर्वश्रेष्ठ सार्थकता को सिद्ध करते हुए रात में अपने-अपने योजनाओ के तहत फ्री होते कॉल दरों का बेसब्री से इंतजार करतें रहते हैं। खैर इस मत के पीछे हमें कुछ लोगों का समर्थन भी मिला क्योंकि इसमे प्रेमिका के पूर्व प्रेमी और भाई से कोई खतरा जो नही था।
प्राचीन काल के शाश्वत प्यार की सार्थकता का ज्ञान तो हमें साहित्यों में मिल ही जाता है इसलिए हमने आधुनिक फटाफट मोहब्बत की ही आगे प्रस्तुती की। जिसे अंग्रेजी में 'इस्टेंट लव' भी कहा जाता है। बस दो-तीन जरूरतों में मुलाकातें हुई आँखें मिली और हो गया प्यार। जरूरतें पूरी हुई नहीं की प्यार रुपी ज्वाला कहा गई कुछ पाता ही नहीं और दिखा भी तो वो नये रूप और रंग में।
ऐसे अनेक उदहारण से भरी बातों का अब ज्यादा जिक्र न करके अब हम आप सब पर छोड़तें हैं की प्रेम के सम्बन्ध में कौन सा प्रेम सार्थक या सफल है,
शाश्वत प्यार या फटाफट मोहब्बत।

बुधवार, 25 मार्च 2009

"जीवन की परिभाषा है"

जीवन की परिभाषा है
कुछ सोची, कुछ आशा है
है जीवन में क्या कुछ सोचों
कुछ अधूरे किस्से, कुछ पाने की आशा है,

कहाँ ठहर गए सब किस्से
कहाँ रुके हैं सब अब भी
खोना था जो, वो खो बैठे
अब तो बस पाने की आशा है।

दुनिया बहुत बड़ी है मित्रो
आँखों में ये न समाएगी,
करना होगा फतेह जीवन को
होगी फिर दुनिया भी परिचित
फिर कहता हूँ मै देखो
जीवन की परिभाषा है
कुछ सोची, कुछ आशा है !!