शनिवार, 25 अप्रैल 2009

दोस्त मिलतें हैं यहाँ दोस्त को बनाने के लिए...

सच्चे दोस्तों का साथ पाकर जो खुशी, संतुष्टि और सम्पूर्णता का अनुभव होता है वह जिंदगी के कुछ खास सुखद एहसासों में से होती है। जहाँ लोग जिंदगी में सिर्फ़ एक सच्चे मित्र के मिलने की कामना करतें हैं वहीं ये खूबसूरत रिश्ता एक अच्छी संख्या में मेरे साथ है। मै यहाँ अपने मित्रो की संख्या उपस्थित कर उनको सीमित नही करना चाहूँगा और न ही उनके नाम को यहाँ देकर किसी रूप से किसी भी चर्चा को जन्म देना चाहूँगा। क्योंकि इसके कारण पहले भी मुझे अपने मित्रो के बीच कुछ मजाक भरे सवालों की जवाब देही मेरे द्वारा दिए गए उनके नाम के क्रम से तथा उनकी कम चर्चा के कारण देना पड़ा था।
अभी हल ही में एक समाचार पत्र के पन्नो को पलटते समय एक लेख पर नजर जाने उसे न पढ़ने की इच्छा रहते हुए भी मै उसे पढ़ गया क्योंकि वो दोस्त बनाने की कला बता रहा था और मै दोस्ती को जिंदगी का एक उपहार मानता हूँ जो किस्मत से मिलती है। उस लेख में इस बात का जिक्र था की अगर आप ख़ुद से ज्यादा दूसरों में दिलचस्पी लेगें तभी आप लोगों को अपना मित्र बना सकते हैं और अगर दूसरों को प्रभावित करने के लिए स्वयं में ही रुचि रखतें हैं तो आपको तनाव और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
इन पंक्तियों का जब मैंने अपने मित्रो के सम्बन्ध में समीक्षा किया तो पाया की वाकई में हमारे बीच में 'मै' नाम को वरीयता नही है और जिनका 'मै' में यानि की ख़ुद में ही सिर्फ़ रूचि थी अब वो हम में शामिल नही है। अब मै इसकी व्याख्या न करते हुए इस नकारात्मक पहलू से एक बार फिर बचाना चाहूँगा।
अपने मित्रो की ख़ुद से ज्यादा अपनो को वरीयता देने में अक्सर मैंने देखा है की अगर कोई ख़ुद बीमार है तो उसे कम चिंता रहती है और अगर कोई अपना बीमार रहता है तो उसे कुछ ज्यादा ही चिंता रहती है। ये खैर बहुत छोटा सा ही उदहारण है। लेकिन इस बात की चर्चा मै यहाँ जरूर करूँगा की अगर मै अपने उद्देश्यों को पाने में तेजी से अग्रसर हूँ तो इसमे मेरे सबसे बड़े सहयोगी मेरे परिवार के साथ मेरे मित्र ही हैं। इसीलिए हमारे मित्रो के संगति और चर्चाओ में कुछ खास जरूर रहता है की हमारे परिवार भी हमारी मित्रता पर गर्व महसूस करतें हैं।
अभी हम जिंदगी के ऐसे बहुमूल्य समय से गुजर रहें हैं की हमें अपनी मंजिलों को पाने के लिए कुछ भावनाओ का त्याग करना पड़ता हैं और इसमे भी हमारे एक सहयोगी के रूप में हमारे मित्र ही है।
मेरे मित्र तो हमारी दोस्ती का निबाह बहुत सच्चाई से करते हैं, उनके साथ मेरी भी यही अभिलाषा है की जिंदगी के प्रत्येक रिश्ते के साथ मै इस बहुमूल्य रत्न रुपी रिश्ते को हमेशा अपने साथ संजो कर रखूं और ईमानदारी और सच्चाई से इसका निर्वाह कर सकूँ।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

"निष्काम प्रेम बनाम रोमांटिक लव..."

कुछ दिनों पूर्व मेरे द्वारा लिखे गए लेख शाश्वत प्रेम या फटाफट मोहब्बत में मैंने डोपामाईन नामक रसायन के श्राव से प्यार रुपी आन्नद की शुरुआत का जिक्र किया था। परन्तु एक प्रश्न इसमे छिपा रह गया था की आख़िर फटाफट मोहब्बत अर्थात् रोमांटिक लव में और शाश्वत प्यार अर्थात् निष्काम प्रेम यदि एक ही प्रकार के रसायन के श्राव से होता है तो फिर शाश्वत प्यार में क्यों कोई व्यक्ति किसी अनजान व्यक्ति से बिना कुछ पाने की चाहत के बगैर उसका पूरा ख्याल रखतें हैं और यहाँ तक की मर मिटने के लिए तैयार हो जाते हैं।
इस प्रश्न के उत्तर में मुझे एक समाचार पत्र के माध्यम से ज्ञात हुआ की फटाफट मोहब्बत के दौरान दिमाग का तीन हिस्सा काम करता है जबकि शाश्वत प्रेम दिमाग के सात अलग-अलग हिस्सों के एक साथ सक्रिय होने से पैदा होता है। दिमाग के इन सातों भागो के सक्रिय होने के फलस्वरूप डोपामाईन के श्राव से आन्नद, खुशी एवं प्यार की भावनाएं पैदा होतीं हैं। प्यार के इस सर्वोच्च शिखर पर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से बिना किसी चाहत के कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है चाहे उससे उसका खून का रिश्ता न ही हो।
अब जब ऐसे कैमिकल लोचा के शोध पत्रों का बखान पूरे विश्व में किया जा रहा है तो इस पर देवदास युगीन प्रेमियों की प्रतिक्रिया आना लाजिमी ही है। उनको इस बात पर बेहद रोष है की एक रसायन में ही उनके अमर प्रेम को समेट कर रख दिया है। आख़िर राधा और कृष्ण के प्रेम की चर्चा हमारे देश में प्राचीन कल से ही चली आ रही है तथा उन्हें एवं आधुनिक काल में जन्मे कुछ प्रेमी युगलों को आधार बनाकर प्रेम के ये पुजारी अपने निष्छल प्रेम पर एक नही बल्कि सात-सात जन्मो को न्यौछावर करने की बात करतें हैं।
इधर फटाफट मोहब्बत में सक्रिय प्रेमी युगलों पर डोपामाईन का असर कुछ ही देर तक दिखता है, जिसका प्रमाण भी मुझे अपने एक परिचित से मिला। अभी हल ही में उनको तीसरे या चौथे अमर प्रेम की प्राप्ति हुई है और शायद रसायन के प्रभाव से अपने को एक बार फिर राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत एवं अन्य प्रेम के पुजारियों के प्रतिरूप में स्वयं को पा रहें हैं।
अब शायद इस प्रकार के फटाफट प्रेम रोगियों के बारे में आगे कोई शोध पत्र प्रस्तुत हो तो शायद उसमे वैज्ञानिक ये कहें की इन लोगो में डोपामाईन का श्राव अत्यधिक या रुक-रुक के होता है या फिर उनके डोपामाईन के रासायनिक संगठन में कुछ कमियों को बताये जिससे उनका कैमिकल लोचा पूर्ण नही हो पाता फलस्वरूप उनके प्रेम सम्बन्ध में बिखराव आता है एवं पुनः श्राव पर एक नया प्रेम सम्बन्ध जन्म ले लेता है।
खैर सभी प्रकार के प्रेम पुजारियों की बातें तो चली आ रही हैं एवं चलती ही रहेगीं। परन्तु सबसे अहम् मुद्दा यही है की वर्तमान समय में कौन सा प्रेम अत्यधिक यथार्थपूर्ण, सम्रद्ध एवं सार्थक है - जीवन के एक बहुमूल्य उपहार के फलस्वरूप शाश्वत प्यार या दिमाग की एक उपज मात्र फटाफट मोहब्बत !

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

"तलाश..."

ये नम हवायें
बहुत हैं जख्मी
सम्भलकर चलो
कहीं ये दर्द न दे जायें,
देखने में फूलों की सेज होगें वों
अहसास में काटों की चुभन देंगें जो
महक मिलने पर दोस्त न समझ लेना
वरना रंगीन मुस्कुराहट की सजा देगा वो,
निकल के इस माया के सरोवर से
अब इक बागबां की तलाश कर तू
अपनी छांव में बैठाकर
सूखे पत्तो से भी अहसासों में चमक दे जो !!

रविवार, 12 अप्रैल 2009

"इक आशा..."

कोशिश है कुछ पाने की
लेकर छोटी सी इक आशा
कहने को कुछ बाकी है
लेकर थोड़ी सी अभिलाषा,
खोने को तो हैं खो बैठे
जीवन की जगीर कोई
अब भी तो कुछ बाकी है
शायद इक छोटी सी आशा !!