सोमवार, 27 जुलाई 2009

"मासूम शाम आ गई..."

कई दिनों से यहाँ मै लिखने से दूर रहा। इस बीच मैंने कुछ लिखा भी तो उसे यहाँ लिखने का मन नही हो पाया और कुछ व्यस्तता ऐसी रही की यहाँ से दूरी भी बनी रही। एक बार फ़िर आप लोगो से उस दूरी को हटाते हुए, मै यहाँ अपनी कुछ भावनाओं को कुछ पंक्तियों के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ........




खोई हुई हैं महफिलें
खोया है इक समां प्यारा
तलाश करने की जब कोशिश की
चलते ही मासूम शाम आ गई,

खोये हैं जीवन के कुछ पहलू
खोये हैं कई फ़साने भी
सबको समेटने की जब कोशिश की
चलते ही मासूम शाम आ गई,

खोया है इक जश्न सुहाना
खोया है एक कारवां भी
पाने की जब कोशिश की
चलते ही मासूम शाम आ गई

अब प्रतिज्ञ हूँ न कुछ खोऊँ
अल्फाजों की जागीर भी
दास्ताँ सहेज लूँ डायरी के पन्नो में
लफ्ज कभी भी मिल जायें जो ,
लेखक बनने की जब भी कोशिश की
चलते ही मासूम शाम आ गई !!

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

"रक्तदान महादान..."

अभी कुछ दिन पहले मै एम्स में रक्तदान करने गया थाहांलाकि इसे दान की श्रेणी में नही रख सकते क्योंकि मै किसी अपने की जरूरत पर रक्त देने गया थामेरे मित्र विकास के पिता जी का यहाँ ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन होने वाला था, इसीलिए यहाँ के डॉक्टरों ने चार यूनिट ब्लड की मांग की थीजिसके लिए हम चार लोग ब्लड बैंक पर इकट्ठा होकर फॉर्म भर रहे थे
तभी एक अन्जान व्यक्ति आकर मुझसे मिला और पूछा की आप लोगो को कितने यूनिट ब्लड की जरूरत हैउसकी हिन्दी बहुत ही अशुध्द थी और उसे समझना भी थोड़ा सा कठिन थामैंने कुछ सोचकर जवाब दिया चारउसने फिर मुझसे पूछा क्या आपके पास एक डोनेटर ज्यादा है मैंने फ़ौरन जवाब दे दिया अभी तो कोई नही है, चार की जरूरत थी और हम चार ही हैंफिर उसने अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में बताया की वो आंध्र प्रदेश से अपने पिता के ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के लिए आया है और उसे भी चार यूनिट ब्लड की जरूरत है, जबकि उसके पास सिर्फ़ तीन ही डोनेटर हैं
एक बात यहाँ एकदम सच कहूँगा की मैंने उस समय पल्ला झाड़ते हुए कहा की अभी तो हमारे पास कोई नही है लेकिन हमारे साथ के ही एक लोग ने उनकी मदद के लिए किसी को फोन करके बुलाया और उसने आने को भी कहा तो लगा जैसे मेरे ऊपर से कोई बोझ उतर गया हैलेकिन कुछ समय बाद जब ये पता चला की किसी कारण वश वो नही रहा है तो सबकी नजर एक बार फिर मेरे ऊपर टिक गईमैंने अपनी नजरे भी बचाने की कोशिश कीतब उस व्यक्ति जिसका नाम किरण कुमार था की मायूस आँखें देखकर मुझे ग्लानि महसूस हुई और मैंने ख़ुद को धिक्कारतें हुए ये कहा की सबको मानवता का पाठ पढाने वाला आज ख़ुद क्यो इससे भाग रहा है और फिर अपनी प्रकृति के ही अनुरूप मैंने इस ऊहापोह से निकलने के लिए, मदद की चाह में और उनकी रक्त की जरूरत की पूर्ति के लिए अपने एक छोटे भाई सौरभ को फोन कियाजो यहाँ पहाड़गंज में रहकर एम. बी. ए. की तैयारी कर रहा था
मैंने उसे पूरी स्थिति की जानकारी दी और उसके स्वयं पर छोड़ दिया की वो उन्हें आगामी कई प्रतियोगी परीक्षाओं के नजदीक रहने के बावजूद जिसमे पहली परीक्षा पॉँच दिन बाद थी, रक्तदान करेगा या नहींतभी उसने मुझे और असमंजस में ये कहकर दल दिया की भय्या आप जैसा कहियेउस समय मुझे कुछ सूझ नही रहा थामैंने फिर उससे धीमे से कहा की मुझे लगा है तभी मैंने तुम्हे फोन किया है और शायद उसने मेरी परेशानी को समझकर कहा की मै रहा हूँमैंने उन लोगो को बताया की हाँ वो रहा है और हम चारो खून देने चले गए
जब मै बहार निकला तो किरण मुझे वही बहार मिलाउस समय सुबह के करीब ग्यारह बज रहे थेवही पर मैंने उसका मोबाईल नम्बर लिया और हम जूस पीने चले गएसौरभ कुछ देर बाद एम्स पहुँचातब तक ब्लड बैंक में काफी भीड़ हो गई थी और हम लोग नम्बर लगाकर वहीं काफी देर तक खड़े रहेफिर कुछ देर बाद लंच ब्रेक भी हो गया और समय पर समय लगता चला गयासौरभ के साथ उन तीनो का ब्लड करीब साढ़े थीं बजे निकाला गया खून देने के बाद वास्तव में वें लोग काफी कृतज्ञ थे और भविष्य में कभी हैदराबाद आने पर बार-बार मिलने पर ही जोर दियावहां से उन्होंने हम लोगो को जबरदस्ती ले जाकर जूस पिलाया और वहीं से हम लोग विदा हुए
एक दिन बाद जब वहीं एम्स में किरण की माँ विकास से मिली तो उन्होंने उसे बहुत सा आर्शीवाद दिया और इस बात पर कृतज्ञता व्यक्त किया की हम लोगो ने वाकई में उनकी बहुत मदद की हैशायद इसका फल भी मिला है, सौरभ को आगामी परीक्षा में सफलता मिली और उसका चयन टाटा-धान अकेडमी मदुरई में एम. बी. ए. के लिए हो गया