शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

"पल-पल बढ़ती हुयी..."

एकांत में बैठा मै कुछ सोच रहा था की तभी कुछ लिखने की चाह में मैंने कलम उठा ली| फिर जो भावनाए निकली वो अब आपके सामने प्रस्तुत है.....

पल-पल बढ़ती हुई 
रिश्तों की गहराई में 
खामोश निगाहों से 
कहती थी वो
कुछ बातें, 
समझ बनी तो 
कुछ था समझा 
लफ्ज नही 
फिर भी दे पाया, 
अब चाहूँ तो 
वो दूर खड़ी है 
बन्धन में बस 
एहसासो की डोर से, 
तमन्नाओं को फिर भी 
मार रहा हूँ 
नई उमंगें 
लाने को,
फिर भी कोई 
वजह है जो 
दिल को
इंतजार रहता है |