सोमवार, 23 नवंबर 2009

हकीकत में न ले चलो दोस्तों...

मुझे हकीकत में न ले चलो दोस्तों,
बस इक बार कहूँगा बेगुनाह हूँ दोस्तों|

कदम पहले बढ़ाने की कोशिश की हर सफ़र में 
ठहर गया तूफानों से रास्ते जब बदल गए दोस्तों| 

हर हाथ सहारे को बढतें रहे हर पल 
गलत थे जो उसको उधार कह गए दोस्तों|

चोट खाकर अभी संभल पाए थे नहीं 
खुद ही आँखों में आँसू देखे थे दोस्तों|

तमन्नायें देखो तो लोकेन्द्र भी रखता है 
बस आप अपनी मंजिल फ़तह करो दोस्तों|

बुधवार, 4 नवंबर 2009

ज़माना बदल गया...

एक दिन पार्क में बैठा मै किसी सोच में डूबा था| तभी वहाँ कुछ रोचक प्रसंग दिखाई पड़ा, जिसे मैंने कागज पर उतार कर उस तीर से एक और निशाना साधने की कोशिश की| जिसे मै और अच्छा कर सकता हूँ, लेकिन दिमाग के थके होने और जल्दबाजी के कारण जैसे बन पड़ी आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ| संशोधन आगे होता रहेगा......अब जरा आप गौर फरमाइएगा......


तन ढकने में 
असमर्थ कपड़ो संग 
प्रेमपाश में 
देख इक लड़की को 
बुजुर्गियत के दूत से 
आवाज आई 
ज़माना बदल गया है,


गौर फ़रमाया तब 
बोल पड़े 
बेटा तुम 
पूरे कपड़ों में 
घर से 
निकली थी 
जवाब कुछ 
उनसा ही आया 
पापा अब 
मौसम है बदल गया,


प्रेमाभिनय में 
छोड़ उन्हें 
फोन पर 
किसी से 
कहतें हैं 
डार्लिंग मत 
आना यहाँ तू 
 मजमा कुछ अब बदला है,


सबको अब 
सन्देश मिला था 
मन तो अब भी 
है वहीं 
बस तन का रंग 
जरा सा बदला है 
ज़माना तो 
देखो है वही 
बस स्वरुप 
थोडा सा बदला है !!