बुधवार, 21 अप्रैल 2010

अब तो मरहम भी जख्म गहराने लगे हैं...

महफ़िल में कुछ परेशां से बैठे हुए जब सबकी नजरो में भी रहकर खुद को लाख छुपाने की कोशिश के बाद मिले एकांत में जब कुछ पंक्तियों को संजोया तो जो रचना बन पड़ी वो आपके सामने प्रस्तुत है....


हम आरजू के सितम से घबराने लगे हैं,
अब तो मरहम भी जख्म गहराने लगे हैं|

खता थी जो बेबाक थे हर साये में,
अब तो अपने भी अंगुलियाँ उठाने लगे हैं| 

हर शख्स जो हाथों को थामे चलता था, 
अब खुद को पाने में, सबको भटकाने लगे हैं|

गुस्ताखी की जो अमन में अपनी दास्ताँ बयाँ की,
अब तो खुद हम अपना आशियाँ बचाने लगे हैं| 

खुली किताब थे जिनके सामने हर पल, 
वो भी तो अब सबको मसखरे सुनाने लगे हैं| 

कैसे करे दो बातें एहसासो की लोकेन्द्र,
अब तो चेहरे से जज्बातों की लकीरें छिपाने लगे हैं| 

25 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया गजल है।बधाई।

अनिल कान्त ने कहा…

kya baat hai !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत ही बढ़िया व लाजवाब ग़ज़ल....

ग्रेट ......

M VERMA ने कहा…

बहुत खूब
सुन्दर

Crazy Codes ने कहा…

bahut khub....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

gazal ke her lafz bolte hain

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गुस्ताखी की जो अमन में अपनी दास्ताँ बयाँ की,
अब तो खुद हम अपना आशियाँ बचाने लगे हैं|

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...सच को बयां करती हुई

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत अच्छी नज़्म है लोकेन्द्र जी ......!!

ये 'आरजू' के सितम ...कुछ समझ नहीं पाई .....!!

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

मैं आज़ाद हूं ने कहा…

bahut khoob likha aap ne
aap yu hee nirantar likte raheye.

रचना दीक्षित ने कहा…

वाह !!!!!!!!! क्या बात है.....

कल्पी ने कहा…

बहुत बढियाँ !!

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

behad hi khoobsurat gazal
harpankti sach ko bayan karti si lagi.
poonam

Saumya ने कहा…

bauhat acchi....i liked d last couplet very much!!!

Unknown ने कहा…

ka bat hai bhai,

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Baujee maza aa gaya....

मेरी आवाज सुनो ने कहा…

janm din kee hardik shubhkamnae...!!

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

janmdin ki bahut bahut badhai evam shubh-kaamnayen

bahut achchha likha

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

कडुवासच ने कहा…

...बेहतरीन ....प्रसंशनीय !!!

Alpana Verma ने कहा…

'गुस्ताखी की जो अमन में अपनी दास्ताँ बयाँ की,
अब तो खुद हम अपना आशियाँ बचाने लगे हैं'
वाह!यह शेर बहुत खूब कहा है.
हम आरजू के सितम से घबराने लगे हैं,अब तो मरहम भी जख्म गहराने लगे हैं|
--बहुत खूब!क्या बात है!!
'चेहरे से जज्बातों की लकीरें छिपाने लगे है'
यह ख़याल भी गज़ब का है!
*****सभी शेर एक से बढ़ कर एक लगे.

निर्मला कपिला ने कहा…

पहले तो बहुत दिन बाद ब्लाग पर आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। बहुत अच्छा प्रयास है गज़ल लिखने का। बधाई लगता है आज कल पढाई मे व्यस्त हो। बहुत बहुत आशीर्वाद।

Randhir Singh Suman ने कहा…

गुस्ताखी की जो अमन में अपनी दास्ताँ बयाँ की,अब तो खुद हम अपना आशियाँ बचाने लगे हैं| nice

निर्मला कपिला ने कहा…

हर एक शेर उमदा।
खता थी ----- बहुत ही बढिया लगा। लगता है एग्ज़ाम से फुरसत मिल गयी है। बहुत बहुत आशीर्वाद।

Unknown ने कहा…

I like the way u represnt ur blog..
I read it..nice

see mines blog too
http://gurudevnityananda.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

bahut hi payaari ghazal...
shukriya share karne k liye..

Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

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