सोई-सोई यादों में
उन सूनी-भूली बातों में
कुछ सपने तो अब भी होगें
उन बिखरे जज्बातों में,
खुद को पाना
खुद को खोना
है ऐसा दस्तूर मेरा
किस-किस पर इल्जाम मढूं मै
इन भटकी सी राहों में,
हर आँखे तकती थी रस्ता
छाँव कहीं पाने में
आना कैसा, जाना कैसा
उस साकी के साये में
ये भी प्रश्न बचे होगें
उन उलझे ख्यालों में,
अब कैसा ये भ्रम लगा है
सफ़र के हर प्याले में
खुद ही अपनी हाला हूँ मै
खुद ही हूँ पीने वाला
हर ख्वाब हकीकत बन जायेगें
जीवन की मधुशाला में!!