बुधवार, 22 सितंबर 2010

जीवन की मधुशाला में...

सोई-सोई यादों में 
उन सूनी-भूली बातों में 
कुछ सपने तो अब भी होगें  
उन बिखरे जज्बातों में, 

खुद को पाना 
खुद को खोना 
है ऐसा दस्तूर मेरा 
किस-किस पर इल्जाम मढूं मै 
इन भटकी सी राहों में, 

हर आँखे तकती थी रस्ता 
छाँव कहीं पाने में 
आना कैसा, जाना कैसा
उस साकी के साये में 
ये भी प्रश्न बचे होगें 
उन उलझे ख्यालों में, 

अब कैसा ये भ्रम लगा है 
सफ़र के हर प्याले में 
खुद ही अपनी हाला हूँ मै 
खुद ही हूँ पीने वाला 
हर ख्वाब हकीकत बन जायेगें 
जीवन की मधुशाला में!!

9 टिप्‍पणियां:

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर

ZEAL ने कहा…

.
खुद ही अपनी हाला हूँ मै खुद ही हूँ पीने वाला हर ख्वाब हकीकत बन जायेगें जीवन की मधुशाला में!!

सुन्दर अभिव्यक्ति।

.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

लोकेन्द्र जी ,
आज किन भूली बिसरी यादों में खो गए .......?
संभवत :कुछ सपने अब भी बचे हों क्या पता ......

Ashish (Ashu) ने कहा…

हर ख्वाब हकीकत बन जायेगें जीवन की मधुशाला में!..क्या खूब कहा हॆ भाई...पर भाई आपके ख्वाब कब हकीकत हो रहे हॆ?

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Ati sundar.
................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

Prem ने कहा…

अच्छी लगी आपकी कविता और अच्छा लगा यह जानकार किआप लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़े हैं । गुज़रा ज़माना पल को याद आ गया । विजय दशमी कीमंगल कामनाएं ।

mridula pradhan ने कहा…

bahot achchi lagi.

Rajani ने कहा…

अच्छी लगी आपकी कविता और अच्छा लगा
कभी अप्प हमारे ब्लॉग पे भी पधारुए हैं आपका जेसे सधासयों का बड़ी बे सबरी से इंतजार करते हैं
http://dineshpareek19.blogspot.com/

Dr. Madhuri Lata Pandey (इला) ने कहा…

sunder rachana