मंगलवार, 26 जुलाई 2011

अब समझ नही आता...

कुछ दिनों पहले की लिखी गई ये पंक्तियाँ बस एक आहत मन के भावनाओं को समाहित कर जैसी बनी वो अब आपके समक्ष प्रस्तुत है....


सुनहरी रातों में सपने भी सुनहरे थे,
हमको हर तरफ सब दिखते भी अपने थे|

खुद के अरमां थे, खुद का ही जूनून था,
दो कदम साथ बढे, सब हमसफ़र भी लगते थे|

चलना शुरू किया और किस किनारे पहुंचे थे,
हर मझधार में अब पतवार खोने से डरते थे|

फ़ासले थी दूरियों की, दिलो की गहराई में मिलते थे,
अब समझ नही आता, नासमझ थे या लोग हमें ठगते थे|

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

मारने पर करोड़ो और बचाने पर सिर्फ 25 हजार...


आज न्यूज चैनलो पर रेशमा जी के हिम्मत और त्याग भरे कर्म को देखकर हर भारतीयों की तरह मुझे भी गर्व हुआ.. अगर अफसोस हुआ तो सिर्फ अपने यहाँ चल रहे सरकारी तंत्र से की जहाँ ब्लास्ट के जाँच व उसे करने वाले के सुरक्षा के नाम पर करोड़ो और वोट के लिए अनुदान या सहायता राशि के नाम पर लाखों का खर्चा किया जाता है और जिसने अपने परिवार के ऊपर देश को तवज्जो दिया उसे सिर्फ और सिर्फ 25 हजार का नकद इनाम.. मै यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मै रुपये से किसी सम्मान को नही जोड़ रहा और न ही अपने जहन में इस बात की थोड़ी सी भी शंका रखता हूँ की इस हिम्मत भरे कदम को उठाने से पहले या बाद में उन्हे किसी प्रकार के इनाम की आशा रही होगी, उन्हे देश में सिर्फ शान्ति चाहिये थी जिसे अपने स्तर तक उन्होने सफल भी बनाया। उनके इस अमूल्य त्याग (अपने पति को ब्लास्ट करने के लिए बम रखने के आरोप में गिरफ्तार करा कर) की किसी भी ईनाम से तुलना किये बिना भी मुझे ये लगता है की वो जिस सम्मान की हकदार थी उन्हे वो नही मिला.. अफसोस है ये मुझे वोट के लिए देश को तोड़ने की राजनीति कर सत्ता का सुख भोगने वालों से..

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

एक प्रश्न...

एक प्रश्न
समय के अंचल में
मेरे मन में
कौँधता है,
मै, मै हूँ
तो मै कौन हूँ.!
तुम, तुम हो
तो तुम कौन हो.!!