सोमवार, 22 जुलाई 2013

आरक्षण न दिया जाये ये अन्याय होगा, लेकिन आरक्षण सही व्यक्ति को मिले तभी न्याय होगा …

आधुनिकता के इस  दौर में तेजी से भागती दुनिया में भारत जैसे विकासशील देश के ऐतिहासिक कारणों से शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े व आशक्तों को अवसर की उपलब्धता हेतु आरक्षण पाना उनका नैतिक अधिकार है। जिससे वो भी अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर देश की प्रगति का हिस्सा बन सके। विकास के दौड़ में आर्थिक व शैक्षिक अवसरों के कुछ वर्गो में संकेन्द्रण  की अधिकता को खत्म करके अवसर के लाभ को सभी तक पहुँचाने के लिए शुरू की गई यह नीति उस वक़्त अपनी प्रासंगिकता से विमुख होने लगती है जब इसमे फिर से आरक्षण के फलस्वरूप मिले अवसर की संकेंद्रता पुन: कुछ इन्ही पिछड़ी जातियों के आर्थिक रूप से उच्च वर्ग में बढ़ जाती है।
अभी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपनाये गए आरक्षण नीति का जब व्यापक रूप से विरोध शुरू हुआ तो इस मुद्दे का राजनीतिकरण करते हुए इसे सामान्य वर्ग बनाम आरक्षित वर्ग करके दंगे की स्थिति उत्पन्न कर दी गई। जबकि अगर ध्यान से देखिये तो वर्तमान की आरक्षण नीति इसी आरक्षित वर्ग के गरीबो के साथ अन्याय और अवसर को छीनने वाला है। उदाहरणस्वरुप अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर के आय का दायरा बढ़ा के, जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति व महिला आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था न होने से वास्तविक रूप से आरक्षण का लाभ पाने का नैतिक हक रखने वाले व्यक्तियों की अपेक्षाओं के साथ मजाक किया जा रहा है।
अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर के आय का दायरा 6.5 लाख रुपये वार्षिक (लगभग 54 हजार रुपये मासिक) कर दिया गया, जबकि एक आँकड़े के अनुसार देश की लगभग 40 करोड़ जनता प्रतिदिन 20 रुपये से कम पर गुजारा करती है। वहाँ क्रीमी लेयर के आय का दायरा इतना अधिक बढ़ा कर इन नीतिकर्ताओं द्वारा आरक्षण का लाभ किसे पहुँचाने की कोशिश की जा रही है और इसके पीछे इनकी मंशा व नीयत क्या है यह साफ जाहिर हो रहा है। साथ ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति व महिला आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था न होने से इस वर्ग में भी आरक्षण का लाभ अधिकतर वही उठा रहे है जिनको इसे पाने का अब कोई नैतिक अधिकार नही रहा।
आरक्षण के वर्तमान स्वरुप को ध्यान से देखिये तो आरक्षण लागू होने से पहले जो आय के अवसर का चक्र उच्च जातियों के बीच घूमता था। अब उस चक्र में बस वो शामिल हो गये है जिन्हें शुरूआती दौर में आरक्षण का लाभ मिल चुका है और अब वे आर्थिक रूप से सक्षम और सशक्त है। अब फिर अगर देखिये तो अवसर का चक्र इन्ही उच्च वर्ग के ही इर्द-गिर्द सीमित है, जबकि गरीब फिर इससे बाहर है। अगर वास्तव में इस आरक्षण नीति को इसके असली हक़दार तक पहुँचाना व इसे प्रासंगिक बनाना है तो अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर का दायरा बढ़ाने के बजाये उसे सीमित करना होगा और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति व महिला आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था को लागू करना होगा। फिर अगर इससे भी आरक्षण की नीति को न्याय होता न दिखे तो जाति के स्थान पर आय के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करनी होगी। इस स्थिति में भारत जैसे बहुजाति वाले देश में सिर्फ दो वर्ग बचेंगे, एक आर्थिक रूप से सम्पन्न और दूसरा गरीब। इस आधार पर यहाँ जो जातियों में वैमनस्यता व्याप्त है वो तो बहुत हद तक सीमित होगी ही बल्कि सरकार द्वारा चलायी जा रही विकास योजनाओं में जातियों के आधार पर गरीबो के साथ जो उपेक्षा हो रही है उसे भी नियंत्रित कर उसका सही से क्रियान्वयन किया जा सकेगा।

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